एक बार स्वामी विवेकानंद जी एक मंदिर से पूजा करने के लिए गए और अपना सारा काम निपटाने के बाद मंदिर से निकले तो उनको बहुत सारे बंदरों ने घेर लिया। जिस कारण से वे दर गए और खुद को बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन बंदर उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। तभी पास खड़े एक वृद्ध संन्यासी ने उनसे कहा, ‘डरो नहीं-रुको और उनका सामना करो!’ विवेकानंद तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढऩे लगे। उनके इस रवैये से सारे बंदर भाग गए। इस घटना से उन्होंने सीखा ग्रहण की डर कर भागने की अपेक्षा मुसीबत का सामना करना चाहिए। कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी, ‘यदि कभी कोई चीज तुम्हें डराए तो उससे भागो मत। पलटो और सामना करो..!