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धन्यवाद सदा प्रभु ख्रीष्ट तुझे, तेरे सन्मुख शीश नवाते हैं,
हम तेरी आराधना करने को, मन्दिर में तेरे आते हैं।

  1. धन्य बीरों का इस मण्डली के, तेरे नाम पे जो बलिदान हुए (2)
    हम उनके साहस त्याग को ले, नित्य आगे बढ़ते जाते हंै।
    धन्यवाद सदा….
  2. अपराध क्षमा कर दयानिधि, बल पौरुष दे अगुवाई कर (2)
    फिर अपने तन मन जीवन को, वेदी पर आज चढ़ाते हैं।
    धन्यवाद सदा….
    जिस क्रूस पर तेरा रक्त बहा, संसार के पापी जन के लिए (2)
    उस क्रूस ध्वजा से प्रेम तेरा, (2) हम दुनिया में फैलाते हैं।
    धन्यवाद सदा….

मैंने अपनी प्रसन्नता के लिए सभी वस्तुओं को सृजा है । (प्रकाशित वाक्य 4:11)


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