मेरे महबूब प्यारे मसीहा, किस जगह तेरा जलवा नहीं है।
किस जगह तेरी शोहरत नहीं है, किस जगह तेरी चर्चा नहीं है
- लोग पीते हैं तो गिर जाते हैं, मैं तो पीता हूँ गिरता नहीं हूँ (2)
मैं तो पीता हूँ दर से मसीह के, (2) ये अंगूरों का शीरा नहीं है।
मेरे महबूब…. - मर गयी थी वह याईर की बेटी, तूने उस पर निगाह-ए-करम की,
कर दिया जिन्दा उसको यह कहकर (2)
वह तो सोती है मुर्दा नहीं है। मेरे महबूब…. - आँख वालों ने तुझको है देखा, कान वालों ने तुझको सुना है (2)
तुझको पहचानते हैं वह इन्सा (2) जिनकी आँखों में पर्दा नहीं है
मेरे महबूब…. - जिसमें शामिल न हो इश्क तेरा, वह परस्तिश परस्तिश नहीं है (2)
तेरे कदमों पे होता नहीं जो (2) कोई सिजदा वह सिजदा नहीं है,
मेरे महबूब….
तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम सदा तक बना रहेगा । (यिर्मयाह 31:3)