यात्री हूँ मै जग में प्रभु जी (2) चलता हूँ मार्ग मैं तेरा,
वह निशान तू है यीशु जी बन्दरगाह तू मेरा (2)
- सोचा था मैं यह जग मेरा, खेस कुटुम्ब सब बहुत है प्यारा,
धोखा सब कोई न सहारा, व्यर्थ ही व्यर्थ है सारा। (2) - धन दौलत सब मान व इज्जत, यही रहेगा जल जायेगा,
यह जगत पाप से जो भरा, श्राप ही श्राप है सारा। (2) - ऐसा कर प्रभु अन्त मैं जानूं, और जानूं मेरी आयु के दिन को,
अब बता कैसा अनित्य हूँ, खेदित हूँ मैं पूरा। (2) - जान गया मैं उस दिन प्रभु जी, बदला जीवन लहू से मेरा,
बड़ा आनन्द तूने कहा था, पाप क्षमा हुआ तेरा। (2) - इस जग में अब मैं हूँ मुसाफिर, क्रूस उठाकर चलता रहूंगा,
पाया मैं अनमोल धन को है जो यीशु से भरा। (2) - आँख जब मेरी बन्द हो जाये, यात्रा मेरी पूरी हो जाये,
पहुंचू मैं स्वर्गीय वतन में, यह है गीत अब मेरा। (2)
मुझसे प्रार्थना करो और मैं तुम्हें अद्दभुत बातें दिखाऊँगा जिन्हें तुम नहीं जानते । (यिर्मयाह 33:3)