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आवाज देता है, प्रभु तुमको बुलाता है,
ऐ मन मेरे तू क्यों प्रभू से दूर जाता है।

  1. पाप मेरे बहुत देखे, स्वर्ग फिर तुझको न भाया,
    बचाने को हमें उसने, उतर कर धरती पर आया,
    हमको छुड़ाता है, प्रभु मुक्ति दिलाता है…..ऐ मन……
  2. गुनाहों की जंजीरों में, बहुत था जकड़ा मन मेरा,
    न कोई उर में ज्योति थी, हर तरफ बस था अंधेरा,
    दीपक जलाता है, प्रभु रास्ता दिखाता है….ऐ मन……
  3. मरे उद्धारकर्ता तुम, न तुमसे दूर जाना है,
    सिवा तेरे मेरा जग में, नहीं मेरा ठिकाना है,
    क्यों भूलकर प्रभु को, हर गम उठाता है….ऐ मन……
  4. दया के आप सागर हो, दया मुझ पापी पर कर दो,
    मेरे इस खाली जीवन में, उजाला प्रेम का भर दो,
    हम भूल जातें हैं, वो न हमें भूल पाता है…ऐ मन…..

मेरे दु:ख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है। भजन संहिता 119:50


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